प्रयागराज

न्यायिक आयोग के वरिष्ठ सदस्य पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं सूचना आयुक्त सुबेश कुमार सिंह प्रयागराज

कथा का रसपान करने पहुंचे एडीजी जोन वाराणसी रामकुमार एवं एडीजी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड डीके ठाकुर

प्रयागराज संपादक दुर्गा मिश्रा की रिपोर्ट।

कोरांव  क्षेत्र के मिश्रपुर गांव में चल रही श्रीमद्भागवत साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ कथा के चतुर्थ दिन की कथा गजेंद्र मोक्ष बलि बामन संवाद रामावतार एवं श्री कृष्ण जन्म पर कथा व्यास लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि श्रीमद् भागवत पुस्तक नहीं साक्षात श्री कृष्ण स्वरूप है इसके एक एक अक्षर में श्री कृष्ण समाए हुए है भागवत कथा का श्रवण करना दान तीर्थ पुण्य आदि कर्मों से बढ़कर है कथा में प्रमुख रूप से उपस्थित एडीजी जोन वाराणसी रामकुमार साहब एडीजी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड डीके ठाकुर साहब सेवानिवृत्त सीडीओ श्रीनिवास मिश्र न्यायिक आयोग के वरिष्ठ सदस्य पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं सूचना आयुक्त सुबेश कुमार सिंह प्रमोद मिश्र पयासी शिव नारायण मिश्र राजू चौबे पिंटू चौबे जिला पंचायत सदस्य डॉ विमलेश कुमार मिश्र अनिल कुमार मिश्र शंभूनाथ सिंह पूर्व प्रधान हरिशंकर मिश्रा कालिका प्रसाद तिवारी दीनबंधु पांडे रामखेलावन पांडे देवी प्रसाद मिश्र मालिक हरिश्चंद्र सिंह पूर्व प्रधान बढ़वारी कला विपिन मिश्रा सुशील कुमार मिश्रा अजीत प्रसाद मिश्र पंडित सुरेंद्र नारायण मिश्र अजय कुमार मिश्र संवाददाता तीर्थराज टाइम सहित तमाम भक्तों ने श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण किया पौराणिक कथाओं के अनुसार गंडक नदी में एक दिन कोनहारा के तट पर जब हाथी पानी पीने आया तो मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। फिर हाथी मगरमच्छ से छुटकारा पाने के लिए कई वर्षों तक लड़ता रहा। इसके बाद वामन अवतार प्रसंग में बताया कि हमारे पास जो है वह सब कुछ भगवान का ही है। भगवान की वस्तुओं को भगवान को समर्पित कर जीवन मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। जिस प्रकार महाराज बलि ने सब कुछ भगवान वामन को समर्पित कर भगवान को ही प्राप्तगजेंद्र मोक्ष की कथा का वर्णन श्रीमद भागवत पुराण में किया गया है। क्षीरसागर में दस हजार योजन ऊँचा त्रिकुट नाम का पर्वत था। उस पर्वत के घोर जंगल में बहुत-सी हथिनियों के साथ एक गजेन्द्र(हाथी) निवास करता था। वह सभी हाथियों का सरदार था। एक दिन वह उसी पर्वत पर अपनी हथिनियों के साथ बड़ी-बड़ी झाड़ियों और पेड़ों को रौंदता हुआ घूम रहा था। उसके पीछे-पीछे हाथियों के छोटे-छोटे बच्चे तथा हथिनियाँ घूम रही थी ।
बड़े जोर की धुप के कारण उसे तथा उसके साथियों को प्यास लगी । तब वह अपने समूह के साथ पास के सरोवर से पाने पी कर अपनी प्यास बुझाने लगा। प्यास बुझाने के बाद वे सभी साथियों के साथ जल- स्नान कर जल- क्रीड़ा करने लगे । उसी समय एक बलवान मगरमच्छ ने उस गजराज के पैर को मुँह मे दबोच कर पाने के अंदर खीचने लगा । गजेंद्र ने अपनी पूरी शक्ति लगा कर अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाया । गजेंद्र के साथ आये हुए हाथी के बच्चे और हथिनियों ने भी काफी जोर लगाया लेकिन सफल न हो सके ।
जब गजेंद्र ने अपने आप को मौत के निकट पाया और कोई उपाय शेष नहीं रह गया तब उसने प्रभु की शरण ली और आर्तनाद सए प्रभु की सतुति करने लगा। जिसे सुनकर भगवान श्री हरि स्वयं आकर उसके प्राणों की रक्षा की ।